सरिता की पहचान एक सशक्त महिला की है. उनके दो नाबालिग बेटे हैं. लगभग 10 साल पहले उनके पति की तबीयत बिगड़ गई. कूल्हे के जख़्मी होने की वजह से वह मेहनत-मज़दूरी करने लायक भी नहीं रहे. सरिता ने ज़िम्मेदारी संभाली और खेतों का काम देखने लगीं. आज परिवार उन्हीं की कमाई से चलता है.

इतना ही नहीं, वह गांव-गांव घूम कर महिलाओं को इंटरनेट इस्तेमाल करना सिखाती हैं. उन्होंने ख़ुद हर तरह की खेती और मवेशी पालने की जानकारी इंटरनेट से ली है. सरिता जिस फसल के लिए 100 वर्गफ़ुट पैदावार लेती उसके ऑनलाइन सुझाव लेने के बाद वह बढ़ कर 150 वर्गफ़ुट हो गई. वह गांव की महिलाओं को यह भी सिखाती हैं कि कैसे राजस्थान सरकार की कल्याण योजनाओं जैसे भामाशाह योजना की जानकारी हासिल करें. इस योजना में इलाज पर किए खर्च की भरपाई सरकार करती है. सरिता के परिवार ने शौचालय योजना में आवेदन किया है. इस योजना में शौचालय बनाकर स्वच्छता को बढ़ावा दिया जाता है.

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